Friday 22 May 2020

अब समय है हमारी आस्था को रिबूट करने का

कोरोना वायरस के खौफ से  मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा समेत सारे धार्मिक स्थल बंद हैं।लोग अपने घरों में पूजा पाठ, नमाज कर रहे हैं। आज हम उन धार्मिक स्थलों में जाने से डर रहे हैं, जिनके लिए हमने मानवता की कई बार हत्या की। अपने और आने वाली पीढ़ी के दिमाग में जहर घोला, लेकिन अब समय है हमारी आस्था को रिबूट करने का। हमें समझना होगा मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा ये हमारे लिए स्कूल की तरह हैं, यहां से हमें सिर्फ लेसन ले कर जाना था, होमवर्क हमें अपने घर पर करना था। और जो लेसन हमें इन धार्मिक स्थलों से मिला, उसका उपयोग अपने रोज के जीवन में करना था।
कबीर दास जी के दोहे बहुत प्रचलित हैं, जिनका सीधा-सीधा मतलब धर्म पद्धति पर वार कहा जाता है।
'कंकर-पत्थर जोरि के  मस्जिद लई बनाय, ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, का बहरा भया खुदा।'
दोहे में कबीर जी उनको बहरा बोल रहे हैं जिनको नमाज़ (इबादत) के लिये बांग लगानी पड़ती है, यह लोग खुद क्यों नही आते नमाज़ पढने (खुद- आय)? “का बहरा भया खुद आय”। मन में तड़प होनी चाहिये इबादत के लिए।
पाथर पूजें हरि मिलें तो मैं पूजूं पहाड़।  घर की चाकी कोऊ ना, पूजे जाका पीसा खा।
इस दोहे में दो अलग अलग बातें की हैं। 1. पत्थर जैसा मन और हृदय से हरि नहीं मिल सकते, और अगर मिलते हैं तो कबीर जी उनको पूजना चाहेंगे जिनका हृदय पहाड़ जैसा कठोर है (क्योंकि उनको तो हरि सदा ही समक्ष होंगे) और 2. घर की चक्की को कोई नहीं पूजता अर्थात कोई भी “पत्थर” को नहीं पूजता है, क्योंकि अगर पत्थर को पूजता तो वो चक्की को भी पूजता।
इन दोनों दोहों का भावार्थ यही है इबादत के लिए मन मे तड़प होनी और हम पत्थर के माध्यम से जिस सर्व-ब्यापी ईश्वर की उपासना करते हैं, उसको भी समझना होगा और वो तो सर्व-ब्यापी है।
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्ट। मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।। 
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्य। वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।
आज जब सभी धार्मिक इबादत के सभी स्कूलों के कपाट बंद है तो हमें समझना होगा उस सर्व-व्यापी को, गीता, कुरान बाइबल, गुरुग्रंथ साहिब के उन उपदेशों को।
"अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बंदे, एक नूर ते सब जग उपजाया कौन भले को मंदे", यही लेसन हमें आस्था के हर विद्यालय में दिया गया। लेकिन हम ने सिर्फ लेसन पढ़ा, होमवर्क नहीं किया तभी हम इसे समझ नहीं पाए। मुसीबत की इस घड़ी में अब समय है हमारी आस्था को रिबूट करने का, फिर से समझने का, मानवता को समझने का, ईश्वर को समझने का।

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